जैसे ही जीरो की बात होती हैं हमारे दिमाक में बहुत से विचार आते हैं जैसे:- जीरो क्या हैं? जीरो का आविष्कार किसने किया? जीरो का आविष्कार कब हुआ? जीरो का इतिहास क्या हैं? समस्त जानकारी हम इस पोस्ट के माध्यम से आप तक पहुचाएंगे।
जीरो का योगदान हर क्षेत्र में हैं लेकिन जीरो गणित विषय के सबसे बड़े आविष्कारों में से एक माना जाता हैं। एक बार आप सोच कर देखिए यदि शून्य का आविष्कार ना होता तो आज गणित कैसी होती।
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जीरो क्या हैं
जीरो एक गणितीय अंक हैं। जिसे गणित की भाषा में 0 लिखा जाता हैं। जिसे सामान्य भाषा में कहाँ जाए तो यह एक संख्या हैं।
जीरो का कोई मान नहीं होता लेकिन यदि जीरो किसी संख्या के पीछे लग जाए तो उसका मान 10 गुना बढ़ा देता हैं।
जैसे :-
- 1 के पीछे जीरो लगा दिया जाए तो 10 (दस) हो जाता हैं।
- 10 के पीछे जीरो लगा दिया जाए तो 100 (सौ) हो जाता हैं।
- 100 के पीछे जीरो लगा दिया जाए तो 1000 (एक हजार) हो जाता हैं।
- 1000 के पीछे जीरो लगा दिया जाए तो 10000 (दस हजार) हो जाता हैं।
- 10000 के पीछे जीरो लगा दिया जाए तो 100000 (एक लाख) हो जाता हैं।
- 100000 के पीछे जीरो लगा दिया जाए तो 1000000 (दस लाख) हो जाता हैं।
यदि आप ऐसे ही जीरो बढ़ाते जाएंगे तो संख्या भी बढ़ती जाएगी।
लेकिन यदि जीरो किसी संख्या के आगे लगाया जाए तो उसका मान वही रहता हैं।
जैसे :-
- 9 के आगे जीरो लगाएंगे तो 09 होगा।
- 99 के आगे जीरो लगाएंगे तो 099 होगा।
अर्थात संख्या का मान ना घटेगा ना बढ़ेगा उतना ही रहेगा।
किसी भी वास्तविक संख्या को शून्य से जोड़ने पर वापस वही संख्या प्राप्त होती है।
जैसे :-
- 9 + 0 = 9
- 10 + 0 = 10
- 99 + 0 = 99
- 1000 + 0 = 1000
किसी वास्तविक संख्या के घटाने पर वापस वही संख्या प्राप्त होती है लेकिन घटाने पर (0 – x) चिह्न परिवर्तन हो जाता है।
जैसे :-
- -9 – 0 = -9
- 10 – 0 = 10
- -99 – 0 = -99
- 1000 – 0 = 1000
किसी भी वास्तविक संख्या को शून्य से गुणा करने से शून्य प्राप्त होता है। यदि जीरो का किसी संख्या से गुणा किया जाए तो 0 ही आता हैं।
जैसे :-
- 9 × 0 = 0
- 99 × 0 = 0
- 999 × 0 = 0
- 9999 × 0 = 0
यदि जीरो का किसी संख्या में भाग दिया जाए तो उत्तर अनन्त (∞) आता हैं।
जैसे :-
- 9 ÷ 0 = ∞
- 100 ÷ 0 = ∞
- 999 ÷ 0 = ∞
- 1000 ÷ 0 = ∞
जीरो, गणित में पूर्णांक, वास्तविक संख्या या किसी अन्य बीजीय संरचना की योगात्मक पहचान के रूप में काम करता हैं।
शून्य को अंग्रेजी में Zero के साथ Nought (UK) और Naught (US) भी कहते हैं।
सरल भाषा में शून्य सबसे छोटी संख्या होती हैं जो No-Negetive संख्या होती हैं लेकिन इसका कोई मान नही होता।
शून्य का आविष्कार किसने किया
शून्य के अविष्कार से पहले गणितीय संख्याओं की गणना करने में और गणितीय प्रश्नों का हल करने में
परेशानी होती थी।
शून्य का अविष्कार गणित के क्षेत्र में एक क्रांति जैसा हैं। अगर शून्य का अविष्कार नही हुआ होता तो शायद आज गणित इतनी आसान ना होती हैं।
आज हम जिस तरह से 0 का प्रयोग कर रहे है और हमारे पास शून्य की परिभाषा हैं उसके पीछे कई गणितज्ञ और वैज्ञानिकों का योगदान हैं।
शून्य के अविष्कार का मुख्य श्रेय भारतीय विद्वान ‘ब्रह्मगुप्त‘ को जाता हैं। क्योंकि उन्होंने ही शुरुआत में शून्य के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया था।
ब्रह्मगुप्त से पहले भारत के महान गणितज्ञ और ज्योतिषी आर्यभट्ट ने शून्य का प्रयोग किया था इसलिए कई लोग आर्यभट्ट को भी शून्य का जनक मानते थे। लेकिन सिद्धांत ना देने के कारण उन्हें शून्य का मुख्य अविष्कारक नही माना जाता।
शून्य के अविष्कार को लेकर शुरुआत से ही मतभेद रहे हैं। क्योंकि गणना काफी पहले से की जा रही है लेकिन बिना शून्य के गणना करना असम्भव हैं।
पहले के लोग शून्य को विभिन्न प्रकार से बिना किसी सिद्धांतो के उपयोग करते थे और इसका कोई प्रतीक भी नही था।
ब्रह्मगुप्त ने इसे प्रतीक और सिद्धांतो के साथ रखा और गणितज्ञ व ज्योतिषी आर्यभट्ट ने इसका उपयोग किया था।
जीरो का अविष्कार कब हुआ
जीरो के अविष्कार के बहुत समय पहले से ही कई प्रतीकों को स्थानधारक के रूप में उपयोग किया जा रहा था।
ऐसे में यह पक्का तो नही कहा जा सकता की शून्य का अविष्कार कब हुआ लेकिन 628 ईसवी में महान भारतीय गणितज्ञ ‘ब्रह्मगुप्त‘ ने शून्य का प्रतीकों और सिद्धांतो के साथ उपयोग किया।
जीरो का इतिहास
यदि आप शून्य के अविष्कार को समझना चाहते हैं तो उसके लिए शून्य के इतिहास को समझना काफी जरूरी हैं।
आज के समय में शून्य के सिद्धांत और इसके प्रयोग काफी आधुनिक हैं। लेकिन शुरुआत में प्राचीन काल के लोग शून्य का उपयोग ऐसे नहीं करते थे।
अगर देखा जाए तो इसका अविष्कार एक स्थानधारक के रूप में हुआ और बाद में धीरे धीरे शून्य का उपयोग बढ़ता गया।
ब्रह्मगुप्त के द्वारा शून्य का आविष्कार करने से पहले भी शून्य का प्रयोग किया जा रहा था। कई प्राचीन मंदिरों के पुरातत्वो और ग्रंथों में इसे देखा गया हैं।
ये कहा नहीं जा सकता कि 0 का आविष्कार कब हुआ और इसका प्रयोग कब से हो रहा है लेकिन यह निश्चित रूप से कहाँ जा सकता हैं कि यह हमारे भारत की ही देन हैं।
शुरुआत में शून्य मात्र एक स्थानधारक था लेकिन बाद में शून्य गणित का एक अहम भाग बन गया।
माना जाता हैं की शून्य की संकल्पना तो काफी पुरानी है लेकिन यह 5वी शताब्दी तक भारत में पूर्ण रूप से विकसित था।
गणना प्रणाली को शुरू करने वाले सबसे पहले लोग सुमेर में निवास करते थे। बेबीलोन की सभ्यता ने उनसे गणना प्रणाली को स्वीकार किया जब यह गणना प्रणाली प्रतीकों पर आधारित थी।
गणना प्रणाली का अविष्कार 4 से 5 हजार वर्ष पहले हुआ था बेबीलोन की सभ्यता ने कुछ प्रतीकों का इस्तेमाल स्थानधारक के रूप में किया।
यह स्थान धारक 10 और 100 के बीच में अंतर बनाता था और 2025 जैसी संख्याओं को पूरा करता हैं।
बेबीलोन की सभ्यता के बाद मायानो ने 0 को प्लेसहोल्डर के रूप में इस्तेमाल करना शुरू किया। उन्होंने पंचांग प्रणाली के निर्माण में इसका उपयोग शुरू किया। उन्होंने कभी भी गणना में 0 का इस्तेमाल नही लिया।
इसके बाद भारत का नाम आता हैं जहाँ से 0 अपने आज के रूप में आया।
बहुत से लोग इस बात को मानते हैं कि 0 बेबीलोन की सभ्यता से भारत में आया लेकिन अधिकतर लोगों ने इस बात को स्वीकार है कि 0 पूर्ण रूप से भारत में ही प्रकट हुआ और यहाँ से पूरी दुनिया में फैला हैं।
Zero एक संस्कृत शब्द हैं जिसे भारत में शून्य कहा जाता हैं। जीरो की परिभाषा सबसे पहले 628 ईसवी में भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने दी।
इसके बाद यह भारत में विकसित हुआ इसके बाद में 8वी शताब्दी में शून्य अरबो की सभ्यता में पहुँचा जहाँ से इसे आज का रूप ‘0‘ मिला।
अन्त में जाकर 12वी शताब्दी के करीब यह यूरोप में पहुँचा और यूरोपीय गणना में सुधार हुआ। देखा जाए तो हमारा भारत देश का जीरो के अविष्कार में सबसे बड़ा योगदान हैं।
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